Chapter 2 – साङ्ख्ययोग Shloka-30

Chapter-2_2.30

SHLOKA

देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.30।।

PADACHHED

देही, नित्यम्_अवध्य:_अयम्‌, देहे, सर्वस्य, भारत,
तस्मात्_सर्वाणि, भूतानि, न, त्वम्_शोचितुम्_अर्हसि ॥ ३० ॥

ANAVYA

(हे) भारत! अयं देही सर्वस्य देहे नित्यम् अवध्य:,
तस्मात्‌ सर्वाणि भूतानि त्वं शोचितुं न अर्हसि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) भारत! [हे अर्जुन!], अयम् [यह], देही [आत्मा], सर्वस्य [सब के], देहे [शरीर में], नित्यम् [सदा ही], अवध्य: [अवध्य ((न मारने योग्य)) है],
तस्मात् [इसलिए], सर्वाणि [सम्पूर्ण], भूतानि [प्राणियों के लिये], त्वम् [तुम], शोचितुम् [शोक करने के], न अर्हसि [योग्य नहीं हो।],

ANUVAAD

हे अर्जुन! यह आत्मा सब के शरीर मे सदा ही अवध्य ((न मारने योग्य)) है,
इसलिए सम्पूर्ण प्राणियों के लिये तुम शोक करने के योग्य नहीं हो।

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