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Gita Chapter-2 Shloka-3

Chapter-2_2.3

SHLOKA

क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप।।2.3।।

PADACHHED

क्लैब्यम्‌, मा, स्म, गमः, पार्थ, न_एतत्_त्वयि_उपपद्यते,
क्षुद्रम्, हृदयदौर्बल्यम्‌ , त्यक्त्वा_उत्तिष्ठ, परन्तप ॥ ३ ॥

ANAVYA

(अतः) (हे) पार्थ! क्लैब्यं मा स्म गम:, त्वयि एतत्‌ न उपपद्यते।
(हे) परन्तप! क्षुद्रं हृदय-दौर्बल्यं त्यक्त्वा (युद्धाय) उत्तिष्ठ।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(अतः) (हे) पार्थ! [(इसलिए) हे अर्जुन!], क्लैब्यम् [नपुंसकता को], मा स्म गम: [मत प्राप्त हो,], त्वयि [तुझ में], एतत् [यह], न उपपद्यते [उचित नहीं जान पड़ती।],
(हे) परन्तप! [हे परंतप!], क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यम् [हृदय की तुच्छ दुर्बलता को], त्यक्त्वा [त्यागकर], {(युद्धाय) [युद्ध के लिये]}, उत्तिष्ठ [ खड़े हो जाओ।],

ANUVAAD

(इसलिए) हे अर्जुन! नपुंसकता को मत प्राप्त हो, तुझ में यह उचित नहीं जान पड़ती।
हे परंतप! हृदय की तुच्छ दुर्बलता को त्यागकर (युद्ध के लिये) खड़े हो जाओ।

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