SHLOKA
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।।
PADACHHED
जातस्य, हि, ध्रुव:, मृत्यु:_ध्रुवम्, जन्म, मृतस्य, च,
तस्मात्_अपरिहार्ये_अर्थे, न, त्वम्, शोचितुम्_अर्हसि ॥ २७ ॥
तस्मात्_अपरिहार्ये_अर्थे, न, त्वम्, शोचितुम्_अर्हसि ॥ २७ ॥
ANAVYA
हि जातस्य मृत्यु: ध्रुव: (अस्ति) मृतस्य च
जन्म ध्रुवं (अस्ति), तस्मात् अपरिहार्ये अर्थे त्वं शोचितुं न अर्हसि।
जन्म ध्रुवं (अस्ति), तस्मात् अपरिहार्ये अर्थे त्वं शोचितुं न अर्हसि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
हि [क्योंकि ((इस मान्यता के अनुसार))], जातस्य [जन्मे हुए की], मृत्यु: [मृत्यु], ध्रुव: (अस्ति) [निश्चित है], मृतस्य (च) [(और) मरे हुए का],
जन्म [जन्म], ध्रुवम् (अस्ति) [निश्चित है।], तस्मात् [इसलिए], अपरिहार्ये [बिना उपाय वाले], अर्थे [विषय में], त्वम् [तुम], शोचितुम् [शोक करने के], न अर्हसि [योग्य नहीं हो।],
जन्म [जन्म], ध्रुवम् (अस्ति) [निश्चित है।], तस्मात् [इसलिए], अपरिहार्ये [बिना उपाय वाले], अर्थे [विषय में], त्वम् [तुम], शोचितुम् [शोक करने के], न अर्हसि [योग्य नहीं हो।],
ANUVAAD
क्योंकि ((इस मान्यता के अनुसार)) जन्मे हुए की मृत्यु निश्चित है और मरे हुए का
जन्म निश्चित है। इसलिए बिना उपाय वाले विषय में तुम शोक करने के योग्य नहीं हो।
जन्म निश्चित है। इसलिए बिना उपाय वाले विषय में तुम शोक करने के योग्य नहीं हो।