Chapter 2 – साङ्ख्ययोग Shloka-14

Chapter-2_2.14

SHLOKA

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत।।2.14।।

PADACHHED

मात्रा-स्पर्शा:_तु, कौन्तेय, शीतोष्ण-सुख-दु:खदा:,
आगमापायिन:_अनित्या:_तान्_तितिक्षस्व, भारत ॥ १४ ॥

ANAVYA

(हे) कौन्तेय! शीतोष्णसुखदुःखदा: मात्रास्पर्शा:
तु आगमापायिन: अनित्या: (च) (सन्ति), (अतः) (हे) भारत! तान् (त्वम्) तितिक्षस्व।

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(हे) कौन्तेय [हे कुन्तीपुत्र! ((अर्जुन))], शीतोष्णसुखदुःखदा: [सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले], मात्रास्पर्शा: [इन्द्रिय और विषयों के संयोग],
तु [तो], आगमापायिन: [उत्पत्ति-विनाशशील], अनित्या: (च) (सन्ति) [(और) अनित्य हैं,], {(अतः) [इसलिये]}, (हे) भारत [हे भारत!], तान् (त्वम्) [उनको (तुम)], तितिक्षस्व [सहन करो]

ANUVAAD

हे कुन्तीपुत्र! ((अर्जुन)) सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील (और) अनित्य हैं, (इसलिये) हे भारत! उनको (तुम) सहन करो।

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