Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-61
SHLOKA
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61।।
भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।।18.61।।
PADACHHED
ईश्वर:, सर्व-भूतानाम्, हृद्देशे_अर्जुन, तिष्ठति,
भ्रामयन्_सर्व-भूतानि, यन्त्रारूढानि, मायया ॥ ६१ ॥
भ्रामयन्_सर्व-भूतानि, यन्त्रारूढानि, मायया ॥ ६१ ॥
ANAVYA
(हे) अर्जुन! यन्त्रारूढानि सर्वभूतानि ईश्वर: मायया
भ्रामयन् सर्वभूतानां हृद्देशे तिष्ठति।
भ्रामयन् सर्वभूतानां हृद्देशे तिष्ठति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) अर्जुन! [हे अर्जुन!], यन्त्रारूढानि [((शरीररूप)) यन्त्र में आरूढ हुए], सर्वभूतानि [सम्पूर्ण प्राणियों को], ईश्वर: [((अन्तर्यामी)) परमेश्वर], मायया [((अपनी)) माया से ((उनके कर्मों के अनुसार))],
भ्रामयन् [भ्रमण कराता हुआ], सर्वभूतानाम् [सब प्राणियों के], हृद्देशे [हृदय में], तिष्ठति [स्थित है।],
भ्रामयन् [भ्रमण कराता हुआ], सर्वभूतानाम् [सब प्राणियों के], हृद्देशे [हृदय में], तिष्ठति [स्थित है।],
ANUVAAD
हे अर्जुन! ((शरीररूप)) यन्त्र में आरूढ हुए सम्पूर्ण प्राणियों को ((अन्तर्यामी)) परमेश्वर ((अपनी)) माया से ((उनके कर्मों के अनुसार))
भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है।
भ्रमण कराता हुआ सब प्राणियों के हृदय में स्थित है।