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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-56

Chapter-18_1.56

SHLOKA

सर्वकर्माण्यपि सदा कुर्वाणो मद्व्यपाश्रयः।
मत्प्रसादादवाप्नोति शाश्वतं पदमव्ययम्।।18.56।।

PADACHHED

सर्व-कर्माणि_अपि, सदा, कुर्वाण:_मद्व्यपाश्रय:,
मत्प्रसादात्_अवाप्नोति, शाश्वतम्‌, पदम्_अव्ययम्‌, ॥ ५६ ॥

ANAVYA

मद्व्यपाश्रय: (कर्मयोगी तु) सर्वकर्माणि सदा कुर्वाण: अपि
मत्प्रसादात्‌ शाश्वतम्‌ अव्ययं पदम् अवाप्नोति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

मद्व्यपाश्रय: (कर्मयोगी तु) [मेरे परायण हुआ (कर्मयोगी तो)], सर्वकर्माणि [सम्पूर्ण कर्मों को], सदा [सदैव], कुर्वाण: [करता हुआ], अपि [भी],
मत्प्रसादात् [मेरी कृपा से], शाश्वतम् [सनातन], अव्ययम् [अविनाशी], पदम् [((परम)) पद को], अवाप्नोति [प्राप्त हो जाता है।],

ANUVAAD

मेरे परायण हुआ (कर्मयोगी तो) सम्पूर्ण कर्मों को सदैव करता हुआ भी
मेरी कृपा से सनातन अविनाशी ((परम)) पद को प्राप्त हो जाता है।

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