Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-50
SHLOKA
सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे।
समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा।।18.50।।
समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा।।18.50।।
PADACHHED
सिद्धिम्, प्राप्त:, यथा, ब्रह्म, तथा_आप्नोति, निबोध, मे,
समासेन_एव, कौन्तेय, निष्ठा, ज्ञानस्य, या, परा ॥ ५० ॥
समासेन_एव, कौन्तेय, निष्ठा, ज्ञानस्य, या, परा ॥ ५० ॥
ANAVYA
या ज्ञानस्य परा निष्ठा (अस्ति) (ताम्) सिद्धिं यथा प्राप्त: (नरः)
ब्रह्म आप्नोति तथा (हे) कौन्तेय! (त्वम्) समासेन एव मे निबोध।
ब्रह्म आप्नोति तथा (हे) कौन्तेय! (त्वम्) समासेन एव मे निबोध।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
या [जो], ज्ञानस्य [ज्ञानयोग की], परा [परा], निष्ठा (अस्ति) [निष्ठा है,], (ताम्) सिद्धिम् [(उस) ((नैष्कर्म्य)) सिद्धि को], यथा [जिस प्रकार से], प्राप्त: (नरः) [प्राप्त होकर ((मनुष्य))],
ब्रह्म [ब्रह्म को], आप्नोति [प्राप्त होता है,], तथा [उस प्रकार को], (हे) कौन्तेय! [हे कुन्तीपुत्र!], {(त्वम्) [तुम]}, समासेन [संक्षेप में], एव [ही], मे [मुझसे], निबोध [समझो।],
ब्रह्म [ब्रह्म को], आप्नोति [प्राप्त होता है,], तथा [उस प्रकार को], (हे) कौन्तेय! [हे कुन्तीपुत्र!], {(त्वम्) [तुम]}, समासेन [संक्षेप में], एव [ही], मे [मुझसे], निबोध [समझो।],
ANUVAAD
जो ज्ञानयोग की परा निष्ठा है, उस ((नैष्कर्म्य)) सिद्धि को जिस प्रकार से प्राप्त होकर ((मनुष्य))
ब्रह्म को प्राप्त होता है, उस प्रकार को हे कुन्तीपुत्र! (तुम) संक्षेप में ही मुझसे समझो।
ब्रह्म को प्राप्त होता है, उस प्रकार को हे कुन्तीपुत्र! (तुम) संक्षेप में ही मुझसे समझो।