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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-5

Chapter-18_1.5

SHLOKA

यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यं कार्यमेव तत्।
यज्ञो दानं तपश्चैव पावनानि मनीषिणाम्।।18.5।।

PADACHHED

यज्ञ-दान-तप:-कर्म, न, त्याज्यम्‌, कार्यम्_एव, तत्‌,
यज्ञ:, दानम्, तप:_च_एव, पावनानि, मनीषिणाम् ॥ ५ ॥

ANAVYA

यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यम् (अपितु) तत्‌ एव कार्यम् (हि)
यज्ञ: दानं च तप: एव मनीषिणां पावनानि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यज्ञदानतप:कर्म [यज्ञ, दान और तपरूप कर्म], न त्याज्यम् [त्याग करने के योग्य नहीं हैं,], {(अपितु) [बल्कि]}, तत् [वह (तो)], एव [अवश्य], कार्यम् (हि) [कर्तव्य है; क्योंकि],
यज्ञ: [यज्ञ,], दानम् [दान], च [और], तप: [तप- ((ये तीनों))], एव [ही ((कर्म))], मनीषिणाम् [बुद्धिमान् पुरुषों को], पावनानि [पवित्र करने वाले हैं।],

ANUVAAD

यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्याग करने के योग्य नहीं हैं, (बल्कि) वह (तो) अवश्य कर्तव्य है; (क्योंकि)
यज्ञ, दान और तप-((ये तीनों)) ही ((कर्म)) बुद्धिमान् पुरुषों को पवित्र करने वाले हैं।

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