Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-33
SHLOKA
धृत्या यया धारयते मनःप्राणेन्द्रियक्रियाः।
योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी।।18.33।।
योगेनाव्यभिचारिण्या धृतिः सा पार्थ सात्त्विकी।।18.33।।
PADACHHED
धृत्या, यया, धारयते, मन:-प्राणेन्द्रिय-क्रिया:,
योगेन_अव्यभिचारिण्या, धृति:, सा, पार्थ, सात्त्विकी ॥ ३३ ॥
योगेन_अव्यभिचारिण्या, धृति:, सा, पार्थ, सात्त्विकी ॥ ३३ ॥
ANAVYA
(हे) पार्थ! यया अव्यभिचारिण्या धृत्या योगेन
मन:प्राणेन्द्रियक्रिया: धारयते सा धृति: सात्त्विकी (वर्तते)।
मन:प्राणेन्द्रियक्रिया: धारयते सा धृति: सात्त्विकी (वर्तते)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) पार्थ! [हे पार्थ!], यया [जिस], अव्यभिचारिण्या [अव्यभिचारिणी], धृत्या [धारण शक्ति से ((मनुष्य))], योगेन [((ध्यान)) योग के द्वारा],
मन:प्राणेन्द्रियक्रिया: [मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को], धारयते [धारण करता है,], सा [वह], धृति: [धृति], सात्त्विकी (वर्तते) [सात्त्विकी है।],
मन:प्राणेन्द्रियक्रिया: [मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को], धारयते [धारण करता है,], सा [वह], धृति: [धृति], सात्त्विकी (वर्तते) [सात्त्विकी है।],
ANUVAAD
हे पार्थ! जिस अव्यभिचारिणी धारण शक्ति से ((मनुष्य)) ((ध्यान)) योग के द्वारा
मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है।
मन, प्राण और इन्द्रियों की क्रियाओं को धारण करता है, वह धृति सात्त्विकी है।