Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-3
SHLOKA
त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिणः।
यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे।।18.3।।
यज्ञदानतपःकर्म न त्याज्यमिति चापरे।।18.3।।
PADACHHED
त्याज्यम्, दोषवत्_इति_एके, कर्म, प्राहु:_मनीषिण:,
यज्ञ-दान-तप:-कर्म, न, त्याज्यम्_इति, च_अपरे ॥ ३ ॥
यज्ञ-दान-तप:-कर्म, न, त्याज्यम्_इति, च_अपरे ॥ ३ ॥
ANAVYA
एके मनीषिण: इति प्राहु: कर्म दोषवत् (अतः) त्याज्यम्,
च अपरे इति (आहु:) यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यम्।
च अपरे इति (आहु:) यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यम्।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
एके [कई एक], मनीषिण: [विद्वान्], इति [ऐसा], प्राहु: [कहते हैं ((कि))], कर्म [कर्म मात्र], दोषवत् (अतः) [दोष युक्त हैं, (इसलिये)], त्याज्यम् [त्यागने के योग्य हैं],
च [और], अपरे [दूसरे ((विद्वान्))], इति [यह], {(आहु:) [कहते हैं ((कि))]}, यज्ञदानतप:कर्म [यज्ञ, दान और तपरूप कर्म], न त्याज्यम् [त्यागने योग्य नहीं हैं।],
च [और], अपरे [दूसरे ((विद्वान्))], इति [यह], {(आहु:) [कहते हैं ((कि))]}, यज्ञदानतप:कर्म [यज्ञ, दान और तपरूप कर्म], न त्याज्यम् [त्यागने योग्य नहीं हैं।],
ANUVAAD
कई एक विद्वान् ऐसा कहते हैं ((कि)) कर्ममात्र दोष युक्त हैं, (इसलिये) त्यागने के योग्य हैं
और दूसरे ((विद्वान्)) यह कहते हैं ((कि)) यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं।
और दूसरे ((विद्वान्)) यह कहते हैं ((कि)) यज्ञ, दान और तपरूप कर्म त्यागने योग्य नहीं हैं।