Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-16
SHLOKA
तत्रैवं सति कर्तारमात्मानं केवलं तु यः।
पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मतिः।।18.16।।
पश्यत्यकृतबुद्धित्वान्न स पश्यति दुर्मतिः।।18.16।।
PADACHHED
तत्र_एवम्, सति, कर्तारम्_आत्मानम्, केवलम्, तु, य:,
पश्यति_अकृत-बुद्धित्वात्_न, स:, पश्यति, दुर्मति: ॥ १६ ॥
पश्यति_अकृत-बुद्धित्वात्_न, स:, पश्यति, दुर्मति: ॥ १६ ॥
ANAVYA
तु एवं सति य: अकृतबुद्धित्वात् तत्र
केवलम् आत्मानं कर्तारं पश्यति स: दुर्मति: (तथ्यम्) न पश्यति।
केवलम् आत्मानं कर्तारं पश्यति स: दुर्मति: (तथ्यम्) न पश्यति।
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तु [परन्तु], एवम् [ऐसा], सति [होने पर ((भी))], य: [जो ((मनुष्य))], अकृतबुद्धित्वात् [अशुद्धबुद्धि होने के कारण], तत्र [उस विषय में यानी कर्मों के होने में],
केवलम् [केवल ((शुद्धस्वरूप))], आत्मानम् [आत्मा को], कर्तारम् [कर्ता], पश्यति [समझता है,], स: [वह], दुर्मति: [मलिन बुद्धि वाला ((अज्ञानी))], (तथ्यम्) न पश्यति [(यथार्थ) नहीं समझता।],
केवलम् [केवल ((शुद्धस्वरूप))], आत्मानम् [आत्मा को], कर्तारम् [कर्ता], पश्यति [समझता है,], स: [वह], दुर्मति: [मलिन बुद्धि वाला ((अज्ञानी))], (तथ्यम्) न पश्यति [(यथार्थ) नहीं समझता।],
ANUVAAD
परन्तु ऐसा होने पर ((भी)) जो ((मनुष्य)) अशुद्धबुद्धि होने के कारण उस विषय में यानी कर्मों के होने में
केवल ((शुद्धस्वरूप)) आत्मा को कर्ता समझता है, वह मलिन बुद्धि वाला ((अज्ञानी)) (यथार्थ) नहीं समझता।
केवल ((शुद्धस्वरूप)) आत्मा को कर्ता समझता है, वह मलिन बुद्धि वाला ((अज्ञानी)) (यथार्थ) नहीं समझता।