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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-10

Chapter-18_1.10

SHLOKA

न द्वेष्ट्यकुशलं कर्म कुशले नानुषज्जते।
त्यागी सत्त्वसमाविष्टो मेधावी छिन्नसंशयः।।18.10।।

PADACHHED

न, द्वेष्टि_अकुशलम्‌, कर्म, कुशले, न_अनुषज्जते,
त्यागी, सत्त्व-समाविष्ट:, मेधावी, छिन्न-संशय: ॥ १० ॥

ANAVYA

(यः) अकुशलं कर्म न द्वेष्टि (च) कुशले न अनुषज्जते (सः)
सत्त्वसमाविष्ट: छिन्नसंशय: मेधावी (च) त्यागी (वर्तते)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

{(यः) [जो ((मनुष्य))]}, अकुशलम् [अकुशल], कर्म [कर्म से ((तो))], न द्वेष्टि [द्वेष नहीं करता], (च) कुशले [(और) कुशल कर्म में], न अनुषज्जते [आसक्त नहीं होता-], {(सः) [वह]},
सत्त्वसमाविष्ट: [शुद्ध सत्वगुण से युक्त ((पुरुष))], छिन्नसंशय: [संशय से रहित,], मेधावी (च) [बुद्धिमान् (और)], त्यागी (वर्तते) [((सच्चा)) त्यागी है।],

ANUVAAD

(जो) ((मनुष्य)) अकुशल कर्म से ((तो)) द्वेष नहीं करता (और) कुशल कर्म में आसक्त नहीं होता- (वह)
शुद्ध सत्वगुण से युक्त ((पुरुष)) संशय से रहित, बुद्धिमान् (और) ((सच्चा)) त्यागी है।

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