Chapter 17 – श्रद्धात्रयविभागयोग Shloka-6
SHLOKA
कर्शयन्तः शरीरस्थं भूतग्राममचेतसः।
मां चैवान्तःशरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान्।।17.6।।
मां चैवान्तःशरीरस्थं तान्विद्ध्यासुरनिश्चयान्।।17.6।।
PADACHHED
कर्शयन्त:, शरीर-स्थम्, भूत-ग्रामम्_अचेतस:,
माम्, च_एव_अन्त:-शरीरस्थम्, तान्_विद्धि_आसुर-निश्चयान् ॥ ६ ॥
माम्, च_एव_अन्त:-शरीरस्थम्, तान्_विद्धि_आसुर-निश्चयान् ॥ ६ ॥
ANAVYA
(ये) शरीरस्थं भूतग्रामं च अन्त:शरीरस्थं माम् एव
कर्शयन्त: तान् अचेतस: (त्वम्) आसुरनिश्चयान् विद्धि।
कर्शयन्त: तान् अचेतस: (त्वम्) आसुरनिश्चयान् विद्धि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(ये) शरीरस्थम् [(जो) शरीररूप से स्थित], भूतग्रामम् [भूत-समुदाय को], च [और], अन्त:शरीरस्थम् [अन्तःकरण में स्थित], माम् [मुझ ((परमात्मा)) को], एव [भी],
कर्शयन्त: [कृश करने वाले हैं अर्थात् शरीर को सुखाने वाले हैं,], तान् [उन], अचेतस: (त्वम्) [अज्ञानियों को (तुम)], आसुरनिश्चयान् [आसुर स्वभाव वाले], विद्धि [जानो।],
कर्शयन्त: [कृश करने वाले हैं अर्थात् शरीर को सुखाने वाले हैं,], तान् [उन], अचेतस: (त्वम्) [अज्ञानियों को (तुम)], आसुरनिश्चयान् [आसुर स्वभाव वाले], विद्धि [जानो।],
ANUVAAD
(जो) शरीररूप से स्थित भूत समुदाय को और अन्तःकरण में स्थित मुझ ((परमात्मा)) को भी
कृश करने वाले हैं अर्थात् शरीर को सुखाने वाले हैं, उन अज्ञानियों को (तुम) आसुर स्वभाव वाले जानो।
कृश करने वाले हैं अर्थात् शरीर को सुखाने वाले हैं, उन अज्ञानियों को (तुम) आसुर स्वभाव वाले जानो।