Chapter 17 – श्रद्धात्रयविभागयोग Shloka-5
SHLOKA
अशास्त्रविहितं घोरं तप्यन्ते ये तपो जनाः।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः।।17.5।।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ताः कामरागबलान्विताः।।17.5।।
PADACHHED
अशास्त्र-विहितम्, घोरम्, तप्यन्ते, ये, तप:, जना:,
दम्भाहङ्कार-संयुक्ता:, काम-राग-बलान्विता: ॥ ५ ॥
दम्भाहङ्कार-संयुक्ता:, काम-राग-बलान्विता: ॥ ५ ॥
ANAVYA
ये जना: अशास्त्रविहितं घोरं तप: तप्यन्ते (च)
दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: कामरागबलान्विता: (च) (सन्ति)।
दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: कामरागबलान्विता: (च) (सन्ति)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
ये [जो], जना: [मनुष्य], अशास्त्रविहितम् [शास्त्र विधि से रहित ((केवल मन से कल्पित))], घोरम् [घोर], तप: [तप को], तप्यन्ते (च) [तपते हैं (तथा)],
दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: [दम्भ और अहंकार से युक्त], कामरागबलान्विता: (च) (सन्ति) [कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से ((भी)) युक्त हैं।],
दम्भाहङ्कारसंयुक्ता: [दम्भ और अहंकार से युक्त], कामरागबलान्विता: (च) (सन्ति) [कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से ((भी)) युक्त हैं।],
ANUVAAD
जो मनुष्य शास्त्र विधि से रहित ((केवल मन से कल्पित)) घोर तप को तपते हैं (तथा)
दम्भ और अहंकार से युक्त (एवं) कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से ((भी)) युक्त हैं।
दम्भ और अहंकार से युक्त (एवं) कामना, आसक्ति और बल के अभिमान से ((भी)) युक्त हैं।