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Chapter 15 – पुरुषोत्तमयोग Shloka-11

Chapter-15_1.11

SHLOKA

यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम्।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः।।15.11।।

PADACHHED

यतन्त:, योगिन:_च_एनम्‌, पश्यन्ति_आत्मनि_अवस्थितम्‌,
यतन्त:_अपि_अकृतात्मान:, न_एनम्‌, पश्यन्ति_अचेतस: ॥ ११ ॥

ANAVYA

यतन्त: योगिन: (अपि) आत्मनि अवस्थितम्‌ एनं (आत्मानम्) पश्यन्ति च अकृतात्मान:
अचेतस: (तु) यतन्त: अपि एनं न पश्यन्ति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यतन्त: [यत्न करने वाले], योगिन: (अपि) [योगीजन (भी)], आत्मनि [अपने हृदय में], अवस्थितम् [स्थित], एनम् (आत्मानम्) [इस (आत्मा) को], पश्यन्ति [तत्त्व से जानते हैं;], च [किंतु], अकृतात्मान: [जिन्होने अपने अन्त:करण को शुद्ध नहीं किया है, ((ऐसे))],
अचेतस: (तु) [अज्ञानीजन (तो)], यतन्त: [यत्न करते रहने पर], अपि [भी], एनम् [इस ((आत्मा)) को], न पश्यन्ति [नहीं जानते।],

ANUVAAD

यत्न करने वाले योगीजन (भी) अपने हृदय में स्थित इस (आत्मा) को तत्त्व से जानते हैं; किंतु जिन्होने अपने अन्त:करण को शुद्ध नहीं किया है, ((ऐसे))
अज्ञानीजन (तो) यत्न करते रहने पर भी इस ((आत्मा)) को नहीं जानते।

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