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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-34

Chapter-13_1.34

SHLOKA

क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोरेवमन्तरं ज्ञानचक्षुषा।
भूतप्रकृतिमोक्षं च ये विदुर्यान्ति ते परम्।।13.34।।

PADACHHED

क्षेत्र-क्षेत्रज्ञयो:_एवम्_अन्तरम्, ज्ञान-चक्षुषा,
भूत-प्रकृति-मोक्षम्, च, ये, विदु:_यान्ति, ते, परम्‌ ॥ ३४ ॥

ANAVYA

एवं क्षेत्रक्षेत्रज्ञयो: अन्तरं च भूतप्रकृतिमोक्षं
ये ज्ञानचक्षुषा विदु: ते परं यान्ति ।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

एवम् [इस प्रकार], क्षेत्रक्षेत्रज्ञयो: [क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के], अन्तरम् [भेद को], च [तथा], भूतप्रकृतिमोक्षम् [कार्य सहित प्रकृति से मुक्त होने को],
ये [जो ((पुरुष))], ज्ञानचक्षुषा [ज्ञान-नेत्रों द्वारा], विदु: [((तत्त्व से)) जानते हैं], ते [वे ((महात्माजन))], परम् [((परमब्रह्म)) परमात्मा को], यान्ति [प्राप्त होते हैं।],

ANUVAAD

इस प्रकार क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के भेद को तथा कार्य सहित प्रकृति से मुक्त होने को
जो ((पुरुष)) ज्ञान-नेत्रों द्वारा ((तत्त्व से)) जानते हैं वे ((महात्माजन)) ((परमब्रह्म)) परमात्मा को प्राप्त होते हैं।

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