SHLOKA
यथा प्रकाशयत्येकः कृत्स्नं लोकमिमं रविः।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत।।13.33।।
क्षेत्रं क्षेत्री तथा कृत्स्नं प्रकाशयति भारत।।13.33।।
PADACHHED
यथा, प्रकाशयति_एक:, कृत्स्नम्, लोकम्_इमम्, रवि:,
क्षेत्रम्, क्षेत्री, तथा, कृत्स्नम्, प्रकाशयति, भारत ॥ ३३ ॥
क्षेत्रम्, क्षेत्री, तथा, कृत्स्नम्, प्रकाशयति, भारत ॥ ३३ ॥
ANAVYA
(हे) भारत! यथा एक: (एव) रवि: इमं कृत्स्नं लोकं
प्रकाशयति तथा (एकम्) (एव) क्षेत्री कृत्स्नं क्षेत्रं प्रकाशयति।
प्रकाशयति तथा (एकम्) (एव) क्षेत्री कृत्स्नं क्षेत्रं प्रकाशयति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
(हे) भारत! [हे अर्जुन!], यथा [जिस प्रकार], एक: (एव) [एक (ही)], रवि: [सूर्य], इमम् [इस], कृत्स्नम् [सम्पूर्ण], लोकम् [ब्रह्माण्ड को],
प्रकाशयति [प्रकाशित करता है,], तथा [उसी प्रकार], (एकम्) (एव) क्षेत्री [(एक) (ही) आत्मा], कृत्स्नम् [सम्पूर्ण], क्षेत्रम् [क्षेत्र को], प्रकाशयति [प्रकाशित करता है।]
प्रकाशयति [प्रकाशित करता है,], तथा [उसी प्रकार], (एकम्) (एव) क्षेत्री [(एक) (ही) आत्मा], कृत्स्नम् [सम्पूर्ण], क्षेत्रम् [क्षेत्र को], प्रकाशयति [प्रकाशित करता है।]
ANUVAAD
हे अर्जुन! जिस प्रकार एक (ही) सूर्य इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को
प्रकाशित करता है, उसी प्रकार (एक) (ही) आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है।
प्रकाशित करता है, उसी प्रकार (एक) (ही) आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को प्रकाशित करता है।