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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-3

Chapter-13_1.3

SHLOKA

तत्क्षेत्रं यच्च यादृक्च यद्विकारि यतश्च यत्।
स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु।।13.3।।

PADACHHED

तत्_क्षेत्रम्, यत्_च, यादृक्_च, यद्विकारि, यत:_च, यत्‌,
स:, च, य:, यत्प्रभाव:_च, तत्_समासेन, मे, शृणु ॥ ३ ॥

ANAVYA

तत् क्षेत्रं यत्‌ च यादृक् च यद्विकारि च यत:
यत्‌ (अभवत्) च स: (क्षेत्रज्ञः) (अपि) य: च यत्प्रभाव:, तत् (सर्वम्) समासेन मे शृणु।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

तत् [वह], क्षेत्रम् [क्षेत्र], यत् [जो], च [और], यादृक् [जैसा है], च [तथा], यद्विकारि [जिन विकारों वाला है], च [और], यत: [जिस कारण से],
यत् (अभवत्) [जो (हुआ है)], च [तथा], स: (क्षेत्रज्ञः) [वह (क्षेत्रज्ञ], {(अपि) [भी]}, य: [जो], च [और], यत्प्रभाव: [जिस प्रभाव वाला है-], तत् (सर्वम्) [वह (सब)], समासेन [संक्षेप में], मे [मुझसे], शृणु [सुनो।]'

ANUVAAD

वह क्षेत्र जो और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है और जिस कारण से
जो (हुआ है) तथा वह (क्षेत्रज्ञ भी) जो और जिस प्रभाव वाला है- वह (सब) संक्षेप में मुझसे सुनो।

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