SHLOKA
अर्जुन उवाच -
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या
जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति
सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।11.36।।
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या
जगत् प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति
सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसङ्घाः।।11.36।।
PADACHHED
अर्जुन उवाच -
स्थाने, हृषीकेश, तव, प्रकीर्त्या, जगत्, प्रहृष्यति_अनुरज्यते,
च, रक्षांसि, भीतानि, दिश:, द्रवन्ति, सर्वे, नमस्यन्ति,
च, सिद्ध-सङ्घा: ॥ ३६ ॥
स्थाने, हृषीकेश, तव, प्रकीर्त्या, जगत्, प्रहृष्यति_अनुरज्यते,
च, रक्षांसि, भीतानि, दिश:, द्रवन्ति, सर्वे, नमस्यन्ति,
च, सिद्ध-सङ्घा: ॥ ३६ ॥
ANAVYA
अर्जुन उवाच -
(हे) हृषीकेश! स्थाने तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यति च अनुरज्यते (तथा)
भीतानि रक्षांसि दिश: द्रवन्ति च सर्वे सिद्धसङ्घा: नमस्यन्ति ।
(हे) हृषीकेश! स्थाने तव प्रकीर्त्या जगत् प्रहृष्यति च अनुरज्यते (तथा)
भीतानि रक्षांसि दिश: द्रवन्ति च सर्वे सिद्धसङ्घा: नमस्यन्ति ।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
अर्जुन उवाच - [अर्जुन ने कहा -], (हे) हृषीकेश! [हे अन्तर्यामिन्!], स्थाने [यह योग्य ही है ((कि))], तव [आपके], प्रकीर्त्या [नाम-गुण और प्रभाव के कीर्तन से], जगत् [जगत् ], प्रहृष्यति [अति हर्षित हो रहा है], च [और], अनुरज्यते (तथा) [अनुराग को ((भी)) प्राप्त हो रहा है (तथा)],
भीतानि [भयभीत], रक्षांसि [राक्षस लोग], दिश: [दिशाओं में], द्रवन्ति [भाग रहे हैं], च [और], सर्वे [सब], सिद्धसङ्घा: [सिद्ध गणों के समुदाय], नमस्यन्ति [नमस्कार कर रहे हैं।]
भीतानि [भयभीत], रक्षांसि [राक्षस लोग], दिश: [दिशाओं में], द्रवन्ति [भाग रहे हैं], च [और], सर्वे [सब], सिद्धसङ्घा: [सिद्ध गणों के समुदाय], नमस्यन्ति [नमस्कार कर रहे हैं।]
ANUVAAD
अर्जुन ने कहा - हे अन्तर्यामिन्! यह योग्य ही है ((कि)) आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत् अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को ((भी)) प्राप्त हो रहा है (तथा)
भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे हैं और सब सिद्ध गणों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं।
भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे हैं और सब सिद्ध गणों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं।