Chapter 11 – विश्वरूपदर्शनम्/विश्वरूपदर्शनयोग Shloka-29

Chapter-11_1.29

SHLOKA (श्लोक)

यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा
विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका-
स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः।।11.29।।

PADACHHED (पदच्छेद)

यथा, प्रदीप्तम्‌, ज्वलनम्‌, पतङ्गा:, विशन्ति, नाशाय,
समृद्ध-वेगा:, तथा_एव, नाशाय, विशन्ति, लोका:,
तव_अपि, वक्‍त्राणि, समृद्ध-वेगा: ॥ २९ ॥

ANAVYA (अन्वय-हिन्दी)

यथा पतङ्गा: नाशाय प्रदीप्तं ज्वलनं समृद्धवेगा: विशन्ति तथा
एव (इमे) लोका: अपि नाशाय तव वक्त्राणि समृद्धवेगा: विशन्ति ।

Hindi-Word-Translation (हिन्दी शब्दार्थ)

यथा [जैसे], पतङ्गा: [कीड़े-मकोड़े ((मोहवश))], नाशाय [नष्ट होने के लिये], प्रदीप्तम् [प्रज्वलित], ज्वलनम् [अग्नि में], समृद्धवेगा: [अति वेग से दौड़ते हुए], विशन्ति [प्रवेश करते हैं], तथा [वैसे],
एव (इमे) [ही (ये)], लोका: [सब लोग], अपि [भी], नाशाय [((अपने)) नाश के लिये], तव [आपके], वक्त्राणि [मुखों में], समृद्धवेगा: [अति वेग से दौड़ते हुए], विशन्ति [प्रवेश कर रहे हैं।],

हिन्दी भाषांतर

जैसे कीड़े-मकोड़े ((मोहवश)) नष्ट होने के लिये प्रज्वलित अग्नि में अति वेग से दौड़ते हुए प्रवेश करते हैं वैसे
ही (ये) सब लोग भी ((अपने)) नाश के लिये आपके मुखों में अति वेग से दौड़ते हुए प्रवेश कर रहे हैं।

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