Chapter 11 – विश्वरूपदर्शनम्/विश्वरूपदर्शनयोग Shloka-28

Chapter-11_1.28

SHLOKA

यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः
समुद्रमेवाभिमुखा द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा
विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति।।11.28।।

PADACHHED

यथा, नदीनाम्‌, बहव:_अम्बु-वेगा:, समुद्रम्_एव_अभिमुखा:,
द्रवन्ति, तथा, तव_अमी, नर-लोक-वीरा:, विशन्ति_वक्‍त्राणि_अभिविज्वलन्ति ॥ २८ ॥

ANAVYA

यथा नदीनां बहव: अम्बुवेगा: समुद्रम् एव अभिमुखा: द्रवन्ति
तथा अमी नरलोकवीरा: (अपि) तव अभिविज्वलन्ति वक्त्राणि विशन्ति ।

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यथा: [जैसे], नदीनाम् [नदियों के], बहव: [बहुत से], अम्बुवेगा: [जल के प्रवाह ((स्वाभाविक ही))], समुद्रम् [समुद्र के], एव [ही], अभिमुखा: [सम्मुख], द्रवन्ति [दौड़ते हैं अर्थात् समुद्र में प्रवेश करते हैं,],
तथा [वैसे ही], अमी [वे], नरलोकवीरा: (अपि) [नरलोक के वीर (भी)], तव [आपके], अभिविज्वलन्ति [प्रज्वलित], वक्त्राणि [मुखों में], विशन्ति [प्रवेश कर रहे हैं।],

ANUVAAD

जैसे नदियों के बहुत से जल के प्रवाह ((स्वाभाविक ही)) समुद्र के ही सम्मुख दौड़ते हैं अर्थात् समुद्र में प्रवेश करते हैं,
वैसे ही वे नरलोक के वीर (भी) आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं।

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