Chapter 11 – विश्वरूपदर्शनम्/विश्वरूपदर्शनयोग Shloka-16

Chapter-11_1.16

SHLOKA

अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं
पश्यामि त्वां सर्वतोऽनन्तरूपम्।
नान्तं न मध्यं न पुनस्तवादिं
पश्यामि विश्वेश्वर विश्वरूप।।11.16।।

PADACHHED

अनेक-बाहूदर-वक्त्र-नेत्रम्, पश्यामि, त्वाम्, सर्वत:_अनन्त-रूपम्
न_अन्तम्, न_मध्यम्, न_पुन:_तव_आदिम्, पश्यामि, विश्वेश्वर,
विश्व-रूप ॥ १६ ॥

ANAVYA

(हे) विश्वेश्वर! त्वाम् अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रं (च) सर्वत: अनन्तरूपं पश्यामि।
(हे) विश्वरूप! (अहम्) तव न अन्तं न मध्यं पुन: न आदिं (एव) पश्यामि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) विश्वेश्वर! [हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामी!], त्वाम् [आपको], अनेकबाहूदरवक्त्रनेत्रम् (च) [अनेक भुजा, पेट, मुख और नेत्रों से युक्त (तथा)], सर्वत: [सब ओर से], अनन्तरूपम् [अनन्त रूपों वाला], पश्यामि [देख रहा हूँ।],
(हे) विश्वरूप! [हे विश्वरूप!], {(अहम्) [मैं]}, तव [आपके], न [न], अन्तम् [अन्त को], न [न], मध्यम् [मध्य को], पुन: [और], न [न], आदिम् (एव) [आदि को (ही)।], पश्यामि [देख पा रहा हूँ।]

ANUVAAD

हे सम्पूर्ण विश्व के स्वामी! आपको अनेक भुजा, पेट, मुख और नेत्रों से युक्त (तथा) सब ओर से अनन्त रूपों वाला देख रहा हूँ।
हे विश्वरूप! (मैं) आपके न अन्त को, न मध्य को और न आदि को (ही) देख पा रहा हूँ।

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