SHLOKA
अक्षराणामकारोऽस्मि द्वन्द्वः सामासिकस्य च।
अहमेवाक्षयः कालो धाताऽहं विश्वतोमुखः।।10.33।।
अहमेवाक्षयः कालो धाताऽहं विश्वतोमुखः।।10.33।।
PADACHHED
अक्षराणाम्_अकार:_अस्मि, द्वन्द्व:, सामासिकस्य, च,
अहम्_एव_अक्षय:, काल:, धाता_अहम्, विश्वतो-मुख: ॥ ३३ ॥
अहम्_एव_अक्षय:, काल:, धाता_अहम्, विश्वतो-मुख: ॥ ३३ ॥
ANAVYA
अहम् अक्षराणाम् अकार: (अस्मि) च सामासिकस्य द्वन्द्व: अस्मि,
अक्षय: काल: (च) विश्वतोमुख: धाता (अपि) अहम् एव (अस्मि)।
अक्षय: काल: (च) विश्वतोमुख: धाता (अपि) अहम् एव (अस्मि)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
अहम् [मैं], अक्षराणाम् [अक्षरों में], अकार: (अस्मि) [अकार हूँ], च [और], सामासिकस्य [समासों में], द्वन्द्व: [द्वन्द्व नामक समास], अस्मि [हूँ,],
अक्षय: [अक्षय], काल: (च) [काल अर्थात् काल का भी महाकाल (तथा)], विश्वतोमुख: [सब ओर मुख वाला विराट् स्वरूप], धाता (अपि) [((सबका)) धारण-पोषण करने वाला (भी)], अहम् [मैं], एव (अस्मि) [ही हूँ।],
अक्षय: [अक्षय], काल: (च) [काल अर्थात् काल का भी महाकाल (तथा)], विश्वतोमुख: [सब ओर मुख वाला विराट् स्वरूप], धाता (अपि) [((सबका)) धारण-पोषण करने वाला (भी)], अहम् [मैं], एव (अस्मि) [ही हूँ।],
ANUVAAD
मैं अक्षरों में अकार हूँ और समासों में द्वन्द्व नामक समास हूँ,
अक्षय काल अर्थात् काल का भी महाकाल (तथा) सब ओर मुख वाला विराट् स्वरूप ((सबका)) धारण-पोषण करने वाला (भी) मैं ही हूँ।
अक्षय काल अर्थात् काल का भी महाकाल (तथा) सब ओर मुख वाला विराट् स्वरूप ((सबका)) धारण-पोषण करने वाला (भी) मैं ही हूँ।