SHLOKA
यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते।।10.3।।
असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते।।10.3।।
PADACHHED
य:, माम्_अजम्_अनादिम्, च, वेत्ति, लोक-महेश्वरम्,
असम्मूढ:, स:, मर्त्येषु, सर्व-पापै:, प्रमुच्यते ॥ ३ ॥
असम्मूढ:, स:, मर्त्येषु, सर्व-पापै:, प्रमुच्यते ॥ ३ ॥
ANAVYA
य: माम् अजम् अनादिं च लोकमहेश्वरं
वेत्ति स: मर्त्येषु असम्मूढ: सर्वपापै: प्रमुच्यते।
वेत्ति स: मर्त्येषु असम्मूढ: सर्वपापै: प्रमुच्यते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
य: [जो], माम् [मुझको], अजम् [अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्म रहित], अनादिम् [अनादि], च [और], लोकमहेश्वरम् [लोकों का महान् ईश्वर],
वेत्ति [तत्त्व से जानता है,], स: [वह], मर्त्येषु [मनुष्यों में], असम्मूढ: [ज्ञानवान् ((पुरुष))], सर्वपापै: [सम्पूर्ण पापों से], प्रमुच्यते [मुक्त हो जाता है।],
वेत्ति [तत्त्व से जानता है,], स: [वह], मर्त्येषु [मनुष्यों में], असम्मूढ: [ज्ञानवान् ((पुरुष))], सर्वपापै: [सम्पूर्ण पापों से], प्रमुच्यते [मुक्त हो जाता है।],
ANUVAAD
जो मुझको अजन्मा अर्थात् वास्तव में जन्म रहित, अनादि और लोकों का महान् ईश्वर
तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् ((पुरुष)) सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।
तत्त्व से जानता है, वह मनुष्यों में ज्ञानवान् ((पुरुष)) सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है।