SHLOKA
सञ्जय उवाच -
एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।1.47।।
एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।1.47।।
PADACHHED
सञ्जय उवाच -
एवम्_उक्त्वा_अर्जुन:, सङ्ख्ये, रथोपस्थे, उपाविशत्,
विसृज्य, सशरम्, चापम्, शोक-संविग्न-मानस: ॥ ४७ ॥
एवम्_उक्त्वा_अर्जुन:, सङ्ख्ये, रथोपस्थे, उपाविशत्,
विसृज्य, सशरम्, चापम्, शोक-संविग्न-मानस: ॥ ४७ ॥
ANAVYA
सञ्जय उवाच -
सङ्ख्ये शोकसंविग्नमानस: अर्जुन: एवम् उक्त्वा
सशरं चापं विसृज्य रथोपस्थे उपाविशत्।
सङ्ख्ये शोकसंविग्नमानस: अर्जुन: एवम् उक्त्वा
सशरं चापं विसृज्य रथोपस्थे उपाविशत्।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
सञ्जय उवाच - [सञ्जय ने कहा -], सङ्ख्ये [रणभूमि में], शोकसंविग्नमानस: [शोक से उद्विग्न मन वाला], अर्जुन: [अर्जुन], एवम् [इस प्रकार], उक्त्वा [कहकर],
सशरम् [बाण सहित], चापम् [धनुष को], विसृज्य [त्यागकर], रथोपस्थे [रथ के पिछले भाग में], उपाविशत् [बैठ गये।],
सशरम् [बाण सहित], चापम् [धनुष को], विसृज्य [त्यागकर], रथोपस्थे [रथ के पिछले भाग में], उपाविशत् [बैठ गये।],
ANUVAAD
सञ्जय ने कहा - रणभूमि में शोक से उद्विग्न मन वाले अर्जुन इस प्रकार कहकर
बाण सहित धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये।
बाण सहित धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये।