Chapter 1 – अर्जुनविषादयोग Shloka-47

Chapter-1_1.47

SHLOKA

सञ्जय उवाच -
एवमुक्त्वाऽर्जुनः संख्ये रथोपस्थ उपाविशत्।
विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः।।1.47।।

PADACHHED

सञ्जय उवाच -
एवम्_उक्त्वा_अर्जुन:, सङ्ख्ये, रथोपस्थे, उपाविशत्‌,
विसृज्य, सशरम्‌, चापम्‌, शोक-संविग्न-मानस: ॥ ४७ ॥

ANAVYA

सञ्जय उवाच -
सङ्ख्ये शोकसंविग्नमानस: अर्जुन: एवम्‌ उक्त्वा
सशरं चापं विसृज्य रथोपस्थे उपाविशत्‌।

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सञ्जय उवाच - [सञ्जय ने कहा -], सङ्ख्ये [रणभूमि में], शोकसंविग्नमानस: [शोक से उद्विग्न मन वाला], अर्जुन: [अर्जुन], एवम् [इस प्रकार], उक्त्वा [कहकर],
सशरम् [बाण सहित], चापम् [धनुष को], विसृज्य [त्यागकर], रथोपस्थे [रथ के पिछले भाग में], उपाविशत् [बैठ गये।],

ANUVAAD

सञ्जय ने कहा - रणभूमि में शोक से उद्विग्न मन वाले अर्जुन इस प्रकार कहकर
बाण सहित धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गये।

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