Chapter 1 – अर्जुनविषादयोग Shloka-31

Chapter-1_1.31

SHLOKA

निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव।
न च श्रेयोऽनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे।।1.31।।

PADACHHED

निमित्तानि, च, पश्यामि, विपरीतानि, केशव,
न, च, श्रेय:_अनुपश्यामि, हत्वा, स्वजनम्_आहवे ॥ ३१ ॥

ANAVYA

(हे) केशव! (अहम्) निमित्तानि च विपरीतानि (एव) पश्यामि (तथा) आहवे
स्वजनं हत्वा श्रेय: च न अनुपश्यामि।

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(हे) केशव! (अहम्) [हे केशव! (मैं)], निमित्तानि [लक्षणों को], च [भी], विपरीतानि (एव) [विपरीत (ही)], पश्यामि (तथा) [देख रहा हूँ (तथा)], आहवे [युद्ध में],
स्वजनम् [स्वजन ((समुदाय)) को], हत्वा [मारकर], श्रेय: [कल्याण], च [भी], न [नहीं], अनुपश्यामि [देखता।],

ANUVAAD

हे केशव! (मैं) लक्षणों को भी विपरीत (ही) देख रहा हूँ (तथा) युद्ध में
स्वजन ((समुदाय)) को मारकर कल्याण भी नहीं देखता।

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