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Chapter 8 – तारकब्रह्मयोग/अक्षरब्रह्मयोग Shloka-4

Chapter-8_1.4

SHLOKA

अधिभूतं क्षरो भावः पुरुषश्चाधिदैवतम्।
अधियज्ञोऽहमेवात्र देहे देहभृतां वर।।8.4।।

PADACHHED

अधिभूतम्‌, क्षर:, भाव:, पुरुष:_च_अधिदैवतम्‌,
अधियज्ञ:_अहम्_एव_अत्र, देहे, देह-भृताम्‌, वर ॥ ४ ॥

ANAVYA

क्षर: भाव: अधिभूतं (वर्तते), पुरुष: अधिदैवतं (वर्तते) च
(हे) देहभृतां वर! अत्र देहे अहम्‌ (वासुदेवः) एव अधियज्ञ: (अस्मि)।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

क्षर: भाव: [उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले ((सब पदार्थ))], अधिभूतम् (वर्तते) [अधिभूत हैं,], पुरुष: [((हिरण्यमय)) पुरुष], अधिदैवतम् (वर्तते) [अधिदैव है], च [और],
(हे) देहभृतां वर! [हे देहधारियों में श्रेष्ठ ((अर्जुन!))], अत्र [इस], देहे [शरीर में], अहम् (वासुदेवः) [मैं (वासुदेव)], एव [ही ((अन्तर्यामीरूप से))], अधियज्ञ: (अस्मि) [अधियज्ञ हूँ।],

ANUVAAD

उत्पत्ति-विनाश धर्म वाले ((सब पदार्थ)) अधिभूत हैं, ((हिरण्यमय)) पुरुष अधिदैव है और
हे देहधारियों में श्रेष्ठ ((अर्जुन!)) इस शरीर में मैं (वासुदेव) ही ((अन्तर्यामीरूप से)) अधियज्ञ हूँ।

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