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Chapter 7 – ज्ञानविज्ञानयोग Shloka-11

Chapter-7_7.11

SHLOKA

बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ।।7.11।।

PADACHHED

बलम्‌, बलवताम्‌, च_अहम्‌, काम-राग-विवर्जितम्‌,
धर्माविरुद्ध:, भूतेषु, काम:_अस्मि, भरतर्षभ ॥ ११ ॥

ANAVYA

(हे) भरतर्षभ! अहं बलवतां कामरागविवर्जितं बलं (अस्मि)
च भूतेषु धर्माविरुद्ध: काम: अस्मि।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

(हे) भरतर्षभ! [हे भरतश्रेष्ठ!], अहम् [मैं], बलवताम् [बलवानों का], कामरागविवर्जितम् [आसक्ति और कामनाओं से रहित], बलम् (अस्मि) [बल अर्थात् सामर्थ्य हूँ],
च [और], भूतेषु [सब भूतों में], धर्माविरुद्ध: [धर्म के अनुकूल अर्थात् शास्त्र के अनुकूल], काम: [काम], अस्मि [हूँ।]

ANUVAAD

हे भरतश्रेष्ठ! मैं बलवानों का आसक्ति और कामनाओं से रहित बल अर्थात्‌ सामर्थ्य हूँ
और सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात्‌ शास्त्र के अनुकूल काम हूँ।

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