SHLOKA
प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्।
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्।।6.27।।
उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्।।6.27।।
PADACHHED
प्रशान्त-मनसम्, हि_एनम्, योगिनम्, सुखम्_उत्तमम्,
उपैति, शान्त-रजसम्, ब्रह्म-भूतम्_अकल्मषम् ॥ २७ ॥
उपैति, शान्त-रजसम्, ब्रह्म-भूतम्_अकल्मषम् ॥ २७ ॥
ANAVYA
हि प्रशान्तमनसम् अकल्मषं शान्तरजसं (च),
एनं ब्रह्मभूतं योगिनम् उत्तमं सुखम् उपैति।
एनं ब्रह्मभूतं योगिनम् उत्तमं सुखम् उपैति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
हि [क्योंकि], प्रशान्तमनसम् [जिसका मन भली प्रकार शान्त है,], अकल्मषम् [जो पाप से रहित है], शान्तरजसम् (च) [(और) जिसका रजोगुण शान्त हो गया है, ((ऐसे))],
एनम् [इस], ब्रह्मभूतम् [सच्चिदानन्दघन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए], योगिनम् [योगी को], उत्तमम् [उत्तम], सुखम् [आनन्द], उपैति [प्राप्त होता है।],
एनम् [इस], ब्रह्मभूतम् [सच्चिदानन्दघन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए], योगिनम् [योगी को], उत्तमम् [उत्तम], सुखम् [आनन्द], उपैति [प्राप्त होता है।],
ANUVAAD
क्योंकि जिसका मन भली प्रकार शान्त है, जो पाप से रहित है (और) जिसका रजोगुण शान्त हो गया है, ((ऐसे))
इस सच्चिदानन्दघन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को उत्तम आनन्द प्राप्त होता है।
इस सच्चिदानन्दघन ब्रह्म के साथ एकीभाव हुए योगी को उत्तम आनन्द प्राप्त होता है।