Chapter 5 – कर्मसन्न्यासयोग Shloka-18
SHLOKA
विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।5.18।।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।5.18।।
PADACHHED
विद्या-विनय-सम्पन्ने, ब्राह्मणे, गवि, हस्तिनि,
शुनि, च_एव, श्वपाके, च, पण्डिता:, सम-दर्शिन: ॥ १८ ॥
शुनि, च_एव, श्वपाके, च, पण्डिता:, सम-दर्शिन: ॥ १८ ॥
ANAVYA
पण्डिता: विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे च गवि
हस्तिनि शुनि च श्वपाके (अपि) समदर्शिन: एव (भवन्ति)।
हस्तिनि शुनि च श्वपाके (अपि) समदर्शिन: एव (भवन्ति)।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
पण्डिता: [ज्ञानी लोग], विद्याविनयसम्पन्ने [विद्या और विनय से सम्पन्न], ब्राह्मणे [ब्राह्मण में], च [तथा], गवि [गौ,],
हस्तिनि [हाथी,], शुनि [कुत्ते], च [और], श्वपाके (अपि) [चाण्डाल में (भी)], समदर्शिन: [समदर्शी ((सबको एक जैसा देखने वाले))], एव (भवन्ति) [ही (होते हैं)।],
हस्तिनि [हाथी,], शुनि [कुत्ते], च [और], श्वपाके (अपि) [चाण्डाल में (भी)], समदर्शिन: [समदर्शी ((सबको एक जैसा देखने वाले))], एव (भवन्ति) [ही (होते हैं)।],
ANUVAAD
ज्ञानी लोग विद्या और विनय से सम्पन्न ब्राह्मण में तथा गौ,
हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में (भी) समदर्शी ((सबको एक जैसा देखने वाले)) ही (होते हैं)।
हाथी, कुत्ते और चाण्डाल में (भी) समदर्शी ((सबको एक जैसा देखने वाले)) ही (होते हैं)।