Gita Chapter-4 Shloka-21
SHLOKA
निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।4.21।।
शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम्।।4.21।।
PADACHHED
निराशी:_यत-चित्तात्मा, त्यक्त-सर्व-परिग्रह:,
शारीरम्, केवलम्, कर्म, कुर्वन्_न_आप्नोति, किल्बिषम् ॥ २१ ॥
शारीरम्, केवलम्, कर्म, कुर्वन्_न_आप्नोति, किल्बिषम् ॥ २१ ॥
ANAVYA
यतचित्तात्मा (च) त्यक्तसर्वपरिग्रह: (ईदृशः)
निराशी: (पुरुषः) केवलं शारीरं कर्म कुर्वन् किल्बिषम् न आप्नोति।
निराशी: (पुरुषः) केवलं शारीरं कर्म कुर्वन् किल्बिषम् न आप्नोति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
यतचित्तात्मा (च) [जिसने अन्त:करण और इन्द्रियों के सहित शरीर को वश में कर लिया है (और)], त्यक्तसर्वपरिग्रह: [जिसने समस्त भोगों की सामग्री का परित्याग कर दिया है], {(ईदृशः) [ऐसा]},
निराशी: (पुरुषः) [आशा से रहित (पुरुष)], केवलम् [केवल], शारीरम् [शरीर-सम्बन्धी], कर्म [कर्म], कुर्वन् [करता हुआ], किल्बिषम् [पाप को], न [नहीं], आप्नोति [प्राप्त होता।],
निराशी: (पुरुषः) [आशा से रहित (पुरुष)], केवलम् [केवल], शारीरम् [शरीर-सम्बन्धी], कर्म [कर्म], कुर्वन् [करता हुआ], किल्बिषम् [पाप को], न [नहीं], आप्नोति [प्राप्त होता।],
ANUVAAD
जिसने अन्त:करण और इन्द्रियों के सहित शरीर को वश में कर लिया है (और) जिसने समस्त भोगों की सामग्री का परित्याग कर दिया है, (ऐसा)
आशा से रहित (पुरुष) केवल शरीर-सम्बन्धी कर्म करता हुआ पाप को नहीं प्राप्त होता।
आशा से रहित (पुरुष) केवल शरीर-सम्बन्धी कर्म करता हुआ पाप को नहीं प्राप्त होता।