SHLOKA
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।3.41।।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।।3.41।।
PADACHHED
तस्मात्_त्वम्_इन्द्रियाणि_आदौ, नियम्य, भरतर्षभ,
पाप्मानम्, प्रजहि, हि_एनम्, ज्ञान-विज्ञान-नाशनम् ॥ ४१ ॥
पाप्मानम्, प्रजहि, हि_एनम्, ज्ञान-विज्ञान-नाशनम् ॥ ४१ ॥
ANAVYA
तस्मात् हे भरतर्षभ! (अर्जुन) त्वम् आदौ इन्द्रियाणि नियम्य
एनं ज्ञानविज्ञाननाशनं पाप्मानं (कामं) हि प्रजहि।
एनं ज्ञानविज्ञाननाशनं पाप्मानं (कामं) हि प्रजहि।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तस्मात् [इसलिये], भरतर्षभ [हे अर्जुन!], त्वम् [तुम], आदौ [पहले], इन्द्रियाणि [इन्द्रियों को], नियम्य [वश में करके],
एनम् [इस], ज्ञानविज्ञाननाशनम् [ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले], पाप्मानम् [महान् पापी (काम) को], हि [अवश्य ही], प्रजहि [बलपूर्वक मार डालो।]
एनम् [इस], ज्ञानविज्ञाननाशनम् [ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले], पाप्मानम् [महान् पापी (काम) को], हि [अवश्य ही], प्रजहि [बलपूर्वक मार डालो।]
ANUVAAD
इसलिये हे भरतर्षभ! (अर्जुन!) तुम पहले इन्द्रियों को वश में करके
इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान् पापी (काम) को अवश्य ही बलपूर्वक मार डालो।
इस ज्ञान और विज्ञान का नाश करने वाले महान् पापी (काम) को अवश्य ही बलपूर्वक मार डालो।