SHLOKA
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते।।3.28।।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते।।3.28।।
PADACHHED
तत्त्ववित्_तु, महाबाहो, गुण-कर्म-विभागयो:,
गुणा:, गुणेषु, वर्तन्ते, इति, मत्वा, न, सज्जते ॥ २८ ॥
गुणा:, गुणेषु, वर्तन्ते, इति, मत्वा, न, सज्जते ॥ २८ ॥
ANAVYA
तु (हे) महाबाहो! (अर्जुन!) गुणकर्मविभागयो: तत्त्ववित् (ज्ञानयोगी)
गुणा: (एव) गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा (तेषु) न सज्जते।
गुणा: (एव) गुणेषु वर्तन्ते इति मत्वा (तेषु) न सज्जते।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तु [परंतु], (हे) महाबाहो [हे महाबाहो! (अर्जुन!)], गुणकर्मविभागयो: [गुणविभाग और कर्मविभाग के], तत्त्ववित् [तत्व को जाननेवाला (ज्ञानयोगी)],
गुणा: (एव) [संपूर्ण गुण (ही)], गुणेषु [गुणों में], वर्तन्ते [बरत रहे हैं], इति [ऐसा], मत्वा [समझकर {(तेषु) [उनमें]}], न सज्जते [आसक्त नहीं होता।],
गुणा: (एव) [संपूर्ण गुण (ही)], गुणेषु [गुणों में], वर्तन्ते [बरत रहे हैं], इति [ऐसा], मत्वा [समझकर {(तेषु) [उनमें]}], न सज्जते [आसक्त नहीं होता।],
ANUVAAD
परंतु हे महाबाहो! (अर्जुन!) गुणविभाग और कर्मविभाग के तत्व को जानने वाला (ज्ञानयोगी)
संपूर्ण गुण (ही) गुणों में बरत रहे हैं ऐसा समझकर (उनमें) आसक्त नहीं होता।
संपूर्ण गुण (ही) गुणों में बरत रहे हैं ऐसा समझकर (उनमें) आसक्त नहीं होता।