Chapter 3 – कर्मयोग Shloka-12

Chapter-3_3.12

SHLOKA

इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः।।3.12।।

PADACHHED

इष्टान्_भोगान्_हि, वः, देवा:, दास्यन्ते, यज्ञ-भाविता:,
तै:_दत्तान्_अप्रदाय_एभ्य:, य:, भुङ्क्ते, स्तेन:, एव, सः ॥ १२ ॥

ANAVYA

यज्ञभाविता: देवा: वः (याचनां विनाऽपि) इष्टान् भोगान् हि दास्यन्ते (अतः)
तै: (देवैः) दत्तान् (भोगान्) य: (पुरूषः) एभ्यः अप्रदाय (स्यमेव) भुङ्क्ते स: स्तेन: एव (अस्ति)।

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यज्ञभाविता: [यज्ञ के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुए], देवा: [देवता], वः [आप लोगों को ({याचनां विनाऽपि [बिना माँगे ही])], इष्टान् [इच्छा के अनुसार], भोगान् [भोगों को], हि [निश्चय ही], दास्यन्ते (अतः) [देते रहेंगे । (इस प्रकार)],
तै: (देवैः) [उन (देवताओं) के द्वारा], दत्तान् (भोगान्) [दिये हुए (भोगों को)], य: (पुरूषः) [जो (पुरूष)], एभ्यः [उनको], अप्रदाय (स्यमेव) [बिना दिये (स्वय ही)], भुङ्क्ते [भोगता है,], स: [वह], स्तेन: [चोर], एव (अस्ति) [ही (है) ।],

ANUVAAD

यज्ञ के द्वारा वृद्धि को प्राप्त हुए देवता आप लोगों को (बिना माँगे ही) इच्छा के अनुसार भोगों को निश्चय ही देते रहेंगे । (इस प्रकार)
उन देवताओं के द्वारा दिये हुए (भोगों को) जो (पुरूष) उनको बिना दिये (स्वयं ही) भोगता है, वह चोर ही है।

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