Chapter 2 – साङ्ख्ययोग Shloka-64
SHLOKA
रागद्वेषवियुक्तैस्तु विषयानिन्द्रियैश्चरन्।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति।।2.64।।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति।।2.64।।
PADACHHED
राग-द्वेष-वियुक्तैः_तु, विषयान्_इन्द्रियै:_चरन्,
आत्म-वश्यै:_विधेयात्मा, प्रसादम्_अधिगच्छति ॥ ६४ ॥
आत्म-वश्यै:_विधेयात्मा, प्रसादम्_अधिगच्छति ॥ ६४ ॥
ANAVYA
तु विधेयात्मा (साधकः) आत्मवश्यै: रागद्वेषवियुक्तैः इन्द्रियै:
विषयान् चरन् (अंतःकरणस्य) प्रसादम् अधिगच्छति।
विषयान् चरन् (अंतःकरणस्य) प्रसादम् अधिगच्छति।
ANAVYA-INLINE-GLOSS
तु [परन्तु], विधेयात्मा [अपने अधीन किये हुए अन्तःकरण वाला], {(साधक:) [साधक]}, आत्मवश्यै: [अपने वश में की हुई], रागद्वेषवियुक्तैः [राग-द्वेष से रहित], इन्द्रियै: [इन्द्रियों द्वारा],
विषयान् [विषयों में], चरन् [विचरण करता हुआ], {(अंतःकरणस्य) [अंत:करण की]}, प्रसादम् [प्रसन्नता को], अधिगच्छति [प्राप्त होता है।]
विषयान् [विषयों में], चरन् [विचरण करता हुआ], {(अंतःकरणस्य) [अंत:करण की]}, प्रसादम् [प्रसन्नता को], अधिगच्छति [प्राप्त होता है।]
ANUVAAD
परन्तु अपने अधीन किये हुए अन्तःकरण वाला (साधक) अपने वश में की हुई राग-द्वेष से रहित इन्द्रियों द्वारा
विषयों में विचरण करता हुआ (अंत:करण की) प्रसन्नता को प्राप्त होता है।
विषयों में विचरण करता हुआ (अंत:करण की) प्रसन्नता को प्राप्त होता है।