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Chapter 18 – मोक्षसन्न्यासयोग Shloka-46

Chapter-18_1.46

SHLOKA

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानवः।।18.46।।

PADACHHED

यत:, प्रवृत्ति:_भूतानाम्‌, येन्‌, सर्वम्_इदम्‌, ततम्‌,
स्व-कर्मणा, तम्_अभ्यर्च्य, सिद्धिं, विन्दति, मानव: ॥ ४६ ॥

ANAVYA

यत: भूतानां प्रवृत्ति: (च) येन इदं सर्वं ततम्‌,
तं स्वकर्मणा अभ्यर्च्य मानव: सिद्धिं विन्दति।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

यत: [जिस ((परमेश्वर)) से], भूतानाम् [सम्पूर्ण प्राणियों की], प्रवृत्ति: (च) [उत्पत्ति हुई है (और)], येन [जिससे], इदम् [यह], सर्वम् [समस्त ((जगत्))], ततम् [व्याप्त है,],
तम् [उस ((परमेश्वर)) की], स्वकर्मणा [अपने ((स्वाभाविक)) कर्मों द्वारा], अभ्यर्च्य [पूजा करके], मानव: [मनुष्य], सिद्धिम् [((परम)) सिद्धि को], विन्दति [प्राप्त हो जाता है।],

ANUVAAD

जिस ((परमेश्वर)) से सम्पूर्ण प्राणियों की उत्पत्ति हुई है (और) जिससे यह समस्त ((जगत्)) व्याप्त है,
उस ((परमेश्वर)) की अपने ((स्वाभाविक)) कर्मों द्वारा पूजा करके मनुष्य ((परम)) सिद्धि को प्राप्त हो जाता है।

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