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Chapter 13 – क्षेत्रक्षेत्रज्ञयोग/क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभागयोग Shloka-1

Chapter-13_1.1

SHLOKA

श्रीभगवानुवाच -
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते।
एतद्यो वेत्ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इति तद्विदः।।13.1।।

PADACHHED

श्रीभगवान् उवाच -
इदम्, शरीरम्‌, कौन्तेय, क्षेत्रम्_इति_अभिधीयते,
एतत्_य:, वेत्ति_तम्‌, प्राहु:, क्षेत्रज्ञ:, इति, तद्विद: ॥ १ ॥

ANAVYA

श्रीभगवानुवाच -
(हे) कौन्तेय! इदं शरीरं क्षेत्रम् इति अभिधीयते (च) एतत्‌
य: वेत्ति तं क्षेत्रज्ञ: इति तद्विद: प्राहु: ।

ANAVYA-INLINE-GLOSS

श्रीभगवानुवाच - [श्री भगवान् ने कहा -], (हे) कौन्तेय! [हे अर्जुन!], इदम् [यह], शरीरम् [शरीर], क्षेत्रम् [क्षेत्र], इति [इस ((नाम से))], अभिधीयते (च) [कहा जाता है; (और)], एतत् [इसको],
य: [जो], वेत्ति [जानता है,], तम् [उसको], क्षेत्रज्ञ: [क्षेत्रज्ञ], इति [इस ((नाम से))], तद्विद: [उनके तत्त्व को जानने वाले (ज्ञानीजन)], प्राहु: [कहते हैं।],

ANUVAAD

श्री भगवान् ने कहा - हे अर्जुन! यह शरीर क्षेत्र इस ((नाम से)) कहा जाता है; (और) इसको
जो जानता है उसको क्षेत्रज्ञ इस ((नाम से)) उनके तत्त्व को जानने वाले (ज्ञानीजन) कहते हैं।

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