Gita Chapter 3 Shloka 18
SHLOKA
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः।।3.18।।
PADACHHED
न_एव, तस्य, कृतेन_अर्थ:, न_अकृतेन_इह, कश्चन,
न, च_अस्य, सर्व-भूतेषु, कश्चित्_अर्थ-व्यपाश्रय: ॥ १८ ॥
ANVAYA
तस्य (महापुरुषस्य) इह न (तु) कृतेन कश्चन अर्थ: (वर्तते) (च) न अकृतेन एव (कश्चन अर्थः वर्तते) च सर्वभूतेषु (अपि) अस्य कश्चित् अर्थव्यपाश्रय: न (विद्यते)।
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‘तस्य (महापुरुषस्य) [उस (महापुरुष का)]’, ‘इह [इस लोक में]’, ‘न (तु) [न (तो)]’, ‘कृतेन [कर्म करने से]’, ‘कश्चन [कोई]’, ‘अर्थ: (वर्तते) [प्रयोजन (रहता है) (और)]’, ‘न [न]’, ‘अकृतेन [कर्मो के न करने से]’,
‘एव (कश्चन अर्थः वर्तते) [ही (कोई प्रयोजन रहता है)]’, ‘च [तथा]’, ‘सर्वभूतेषु [सम्पूर्ण प्राणियों में (भी)]’, ‘अस्य [इसका]’, ‘कश्चित् [किंचिन्मात्र भी]’, ‘अर्थव्यपाश्रय: [स्वार्थ का सम्बन्ध]’, ‘न (विद्यते) [नहीं (रहता)।]’,
ANUVAAD
उस (महापुरुष का) इस लोक में न (तो) कर्म करने से कोई प्रयोजन (रहता है) (और) न कर्मो के न करने से
ही (कोई प्रयोजन रहता है) तथा सम्पूर्ण प्राणियों में (भी) इसका किंचिन्मात्र भी स्वार्थ का सम्बन्ध नहीं (रहता)।