Gita Chapter-2 Shloka-11

 

SHLOKA

श्री भगवानुवाच –
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे।
गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः।।2.11।।

PADACHHED

श्री भगवान् उवाच –
अशोच्यान्_अन्वशोच:_त्वम्‌, प्रज्ञा-वादान्_च भाषसे,
गतासून्_अगतासून्_च, न_अनुशोचन्ति, पण्डिता: ॥ ११ ॥

ANAVYA

श्री भगवान् उवाच –
(हे अर्जुन!) त्वम्‌ अशोच्यान्‌ अन्वशोच: च प्रज्ञावादान् भाषसे (परञ्च)
गतासून् च अगतासून् (अपि) पण्डिता: न अनुशोचन्ति।

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‘श्री भगवान् उवाच – [श्री भगवान् ने कहा – ]’, ‘(हे अर्जुन!) त्वम् [(हे अर्जुन) तुम]’, ‘अशोच्यान् [न शोक करने योग्य ((मनुष्यों के लिये))]’, ‘अन्वशोच: [शोक करते हो]’, ‘च [और]’, ‘प्रज्ञावादान् [पंडितो के जैसे वचनों को]’, ‘भाषसे [कहते हो;]’, ‘{(परञ्च) [परंतु]}’,
‘गतासून् [((जिनके)) प्राण चले गये है ((उनके लिये))]’, ‘च [और]’, ‘अगतासून् (अपि) [((जिनके)) प्राण नहीं गये हैं ((उनके लिये)) (भी)]’, ‘पण्डिता: [पण्डितजन]’, ‘न अनुशोचन्ति [शोक नहीं करते हैं।]’,

ANUVAAD

श्री भगवान् ने कहा – (हे अर्जुन) तुम न शोक करने योग्य ((मनुष्यों के लिये)) शोक करते हो और पंडितो के जैसे वचनों को कहते हो; (परंतु)
((जिनके)) प्राण चले गये हैं ((उनके लिये)) और ((जिनके)) प्राण नहीं गये हैं ((उनके लिये)) (भी) पण्डितजन शोक नहीं करते हैं।

 

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